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मंगलवार, 18 मार्च 2025

9. 18.3.2025 (राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन)

 


प्रेमचंद मारकंडा  एस डी कालेज फ़ार वुमन,जालंधर के हिन्दी विभाग ने करवाया राष्ट्रीय वैबिनार

पी सी एम एस डी  कालेज फ़ार वुमन, जालंधर के हिन्दी विभाग द्वारा राष्ट्रीय वैबिनार का आयोजन किया गया जिसके संसाधन व्यक्ति के रूप में डा. पान सिंह  आमन्त्रित थे। डा. पान सिंह हिंदी विभाग हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय  शिमला  के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके वक्तव्य का विषय हिंदी साहित्य का वैश्विक परिदृश्य था। डा. पान सिंह ने हिन्दी विषय की महत्ता को मुख्य रखते हुए विद्यार्थियों को हिंदी के माध्यम से वह भविष्य निर्मित कर सकते है। डॉ. पान सिंह ने हिंदी को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सीख कर जीवन यापन करने के बारे में जानकारी दी। उन्होंने अपने व्याख्यान में हिंदी को अंग्रेजी की ही तरह सीखने व पड़ने पर ध्यान केंद्रित  करते हुए बताया कि हिंदी सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर नहीं पढ़ाई जा रही बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक रूप धारण कर रही है और विदेशों में एक विषय हिंदी को भी सम्मिलित किया गया है। डॉ . पान सिंह ने बताया के हिंदी वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी भाषा से ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है और यह प्राथमिक स्तर पर स्थापित हो चुकी है।अंत में, डा.श्रीमती नीना मित्तल ने संसाधन व्यक्ति और प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया।

शनिवार, 8 मार्च 2025

8. 8.3.2025 (अतिथि व्याख्यान का आयोजन)

 



पी.सी.एम.एस.डी. कॉलेज फॉर विमेन के हिंदीविभाग ने कॉलेज की एनसीसी इकाई के सहयोग से महारानी अहिल्याबाई होल्कर - एक दूरदर्शी सुधारक और महिला शिक्षा की पथप्रदर्शक विषय पर अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया। इस सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के क्षेत्रीय समरसता प्रभारी प्रमोद कुमार जी ने भाग लिया, जिन्होंने शिक्षा, शासन और सामाजिक सुधार में महारानी अहिल्याबाई होल्कर के उल्लेखनीय योगदान पर एक ज्ञानवर्धक व्याख्यान दिया। हिंदी विभाग की प्रमुख डॉ. नीना मित्तल और एनसीसी प्रभारी कैप्टन प्रिया महाजन ने अतिथि का स्वागत किया। महारानी अहिल्याबाई होल्कर समावेशी शिक्षा, नैतिक नेतृत्व और राष्ट्र निर्माण को बढ़ावा देने में अग्रणी थीं। व्याख्यान में इस बात पर जोर दिया गया कि होलकर का योगदान राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) के सिद्धांतों के साथ कैसे सरेखित है। संस्कृत विद्वानों और पारंपरिक शिक्षा के प्रति उनका संरक्षण आईकेएस सिद्धांतों को दर्शाता है जिसे एनईपी पुनर्जीवित करना चाहता है, यह सुनिश्चित करता है कि स्वदेशी ज्ञान प्रणाली भारत के शैक्षणिक परिदृश्य के लिए केंद्रीय बनी रहे।